अनिल अग्रवाल की वेदांता ग्रुप डायमंड किंग ‘डी बीयर्स’ खरीदने की दौड़ में शामिल, बदल सकता है वैश्विक हीरा बाजार
भारतीय उद्योगपति अनिल अग्रवाल की कंपनी वेदांता समूह (Vedanta Group) अब वैश्विक हीरा बाजार में बड़ी छलांग लगाने की तैयारी में है। हालिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वेदांता ने दुनिया की सबसे बड़ी हीरा कंपनी डी बीयर्स (De Beers) में हिस्सेदारी खरीदने की दौड़ में प्रवेश कर लिया है। अगर यह डील सफल होती है, तो भारत का यह कॉन्ग्लोमेरेट वैश्विक हीरा उद्योग के शीर्ष प्लेयर्स में शामिल हो जाएगा।
क्यों खास है यह डील?
डी बीयर्स दुनिया की सबसे बड़ी डायमंड माइनिंग और ट्रेडिंग कंपनी है, जिसकी स्थापना 1888 में हुई थी।
वर्तमान में यह एंग्लो अमेरिकन प्लेटिनम (Anglo American Platinum) की सहायक कंपनी है, जो 85% हिस्सेदारी रखती है।
बॉट्सवाना सरकार के पास बाकी 15% शेयर हैं।
डी बीयर्स दुनिया के 30-40% रफ डायमंड्स की सप्लाई करती है और इसका सालाना टर्नओवर $6 बिलियन से अधिक है।
वेदांता क्यों चाहता है डी बीयर्स?
- माइनिंग एक्सपर्टीज का विस्तार: वेदांता पहले से ही जिंक, आयरन, तांबा और एल्युमिनियम जैसे प्राकृतिक संसाधनों में दुनिया की अग्रणी कंपनियों में शामिल है। डायमंड सेक्टर में एंट्री से उसकी माइनिंग पोर्टफोलियो और मजबूत होगी।
- भारत के ज्वैलरी मार्केट पर पकड़: भारत दुनिया के 90% हीरों की कटिंग-पॉलिशिंग का केंद्र है। डी बीयर्स के साथ जुड़कर वेदांता सीधे रफ डायमंड सप्लाई चेन कंट्रोल कर सकता है।
- चीन की बढ़ती डिमांड: पोस्ट-पैंडेमिक चीन में लक्जरी गुड्स की मांग तेजी से बढ़ी है, जिससे डायमंड बिजनेस में ग्रोथ के नए अवसर पैदा हुए हैं।
कौन-कौन है डील की दौड़ में?
वेदांता के अलावा, डी बीयर्स में दिलचस्पी रखने वाले अन्य प्रमुख खिलाड़ी:
रोथ्सचाइल्ड ग्रुप (Rothschild Group)
रियो टिंटो (Rio Tinto)
कुछ मिडिल ईस्ट सॉवरिन फंड्स
हालांकि, एंग्लो अमेरिकन अभी तक अपनी हिस्सेदारी बेचने को लेकर आधिकारिक तौर पर कोई बयान नहीं दिया है।
चुनौतियां क्या हैं?
- प्राइस टैग: डी बीयर्स की मार्केट वैल्यू $10-12 बिलियन आंकी जा रही है, जिसमें से 85% हिस्सेदारी के लिए वेदांता को $8-9 बिलियन का निवेश करना होगा।
- रेगुलेटरी अप्रूवल: दक्षिण अफ्रीका और बॉट्सवाना सरकारों से मंजूरी जटिल हो सकती है, क्योंकि डी बीयर्स उनकी अर्थव्यवस्था के लिए अहम है।
- एनवायरनमेंटल कंसर्न: डायमंड माइनिंग को लेकर ग्लोबल इको-एक्टिविस्ट्स की आपत्तियां एक बड़ी बाधा हो सकती हैं।
अनिल अग्रवाल का प्लान क्या है?
वेदांता पहले ही 2022 में गोवा में हीरा की खदानों के लिए बोली लगा चुका है।
अगर डी बीयर्स डील सफल होती है, तो वेदांता एकीकृत हीरा व्यापार मॉडल (माइनिंग टू ज्वैलरी) बना सकता है।
इससे भारत को रफ डायमंड्स की आपूर्ति में सीधा फायदा मिलेगा और सरकार के ‘Make in India’ मिशन को बल मिलेगा।
एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं?
“यह डील वेदांता को ग्लोबल माइनिंग सेक्टर में टॉप-3 प्लेयर्स में ला सकती है, लेकिन फंडिंग और पॉलिटिकल चुनौतियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।”
नेचुरल रिसोर्सेज एक्सपर्ट, मॉर्गन स्टेनली
आगे क्या होगा?
अगले 2-3 महीनों में एंग्लो अमेरिकन की ओर से आधिकारिक बोली प्रक्रिया का एलान हो सकता है।
वेदांता को फाइनेंसिंग के लिए ग्लोबल बैंकों और PE फंड्स से समझौते करने होंगे।
- भारत सरकार की ओर से डिप्लोमैटिक सपोर्ट मिलने की संभावना है।
नोट: यह डील अभी प्रारंभिक चरण में है, इसलिए निवेशकों को वेदांता के शेयरों में अटकलबाजी से बचना चाहिए।