यूपी के किसान की सब्जी खेती से कमाल: पॉलीहाउस तकनीक से शुभम कमा रहे 10-12 लाख रुपये सालाना
उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले के एक युवा किसान शुभम ने पारंपरिक खेती को छोड़कर आधुनिक पॉलीहाउस तकनीक अपनाई और सब्जी खेती के जरिए सालाना 10 से 12 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा कमा रहे हैं। शुभम, जिन्होंने एग्री-बिजनेस में एमबीए की पढ़ाई पूरी की, ने खेती को एक लाभकारी व्यवसाय के रूप में अपनाया। उनकी सफलता की कहानी न केवल अन्य किसानों के लिए प्रेरणा है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि आधुनिक तकनीकों और सही रणनीति के साथ खेती से लाखों की कमाई संभव है। शुभम ने मात्र आधे एकड़ जमीन पर लाल, पीली और हरी शिमला मिर्च की खेती शुरू की, और उनकी मेहनत ने उन्हें स्थानीय बाजार में एक मॉडल किसान बना दिया।
पॉलीहाउस तकनीक का उपयोग
शुभम ने अपनी खेती को सफल बनाने के लिए पॉलीहाउस तकनीक का सहारा लिया, जो नियंत्रित वातावरण में खेती करने की एक आधुनिक विधि है। पॉलीहाउस में तापमान, नमी और कीटों को नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन बढ़ता है। शुभम ने अपनी आधे एकड़ जमीन पर पॉलीहाउस स्थापित करने के लिए शुरुआती निवेश के रूप में लगभग 5 लाख रुपये खर्च किए। इस निवेश में पॉलीहाउस संरचना, ड्रिप सिंचाई प्रणाली, और उच्च गुणवत्ता वाले बीज शामिल थे। उन्होंने लाल, पीली और हरी शिमला मिर्च को चुना, क्योंकि इनकी मांग स्थानीय और शहरी बाजारों में साल भर रहती है, और ये उच्च कीमत पर बिकती हैं। एक सीजन में शुभम 20-25 टन शिमला मिर्च का उत्पादन करते हैं, जिसे वे 70-100 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचते हैं।
आर्थिक लाभ और रणनीति
शुभम की खेती की रणनीति में कम लागत और अधिक मुनाफे पर ध्यान दिया गया। पॉलीहाउस में ड्रिप सिंचाई और मल्चिंग जैसी तकनीकों ने पानी और उर्वरक की खपत को 40% तक कम किया। इसके अलावा, उन्होंने ऑफ-सीजन खेती पर ध्यान केंद्रित किया, जब शिमला मिर्च की कीमतें बाजार में अधिक होती हैं। उदाहरण के लिए, मानसून के बाद सितंबर से नवंबर के बीच शिमला मिर्च की कीमतें 100 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच जाती हैं। शुभम ने स्थानीय मंडियों के साथ-साथ लखनऊ और दिल्ली के रिटेल चेन और होटलों के साथ करार किया, जिससे उनकी उपज को स्थिर बाजार मिला। उनकी कुल वार्षिक लागत 3-4 लाख रुपये है, जिसमें बीज, उर्वरक, श्रम, और पॉलीहाउस रखरखाव शामिल है। इसके मुकाबले, उनकी आय 14-16 लाख रुपये है, जिससे शुद्ध मुनाफा 10-12 लाख रुपये रहता है।
सरकारी सहायता और प्रशिक्षण
शुभम की सफलता में उत्तर प्रदेश सरकार की योजनाओं और कृषि विभाग की सलाह का बड़ा योगदान रहा। उन्होंने राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत पॉलीहाउस स्थापना के लिए 50% सब्सिडी (लगभग 2.5 लाख रुपये) प्राप्त की। इसके अलावा, उन्होंने लखनऊ के भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (IIVR) से प्रशिक्षण लिया, जहां उन्हें उन्नत बीज चयन, कीट प्रबंधन, और मिट्टी परीक्षण की जानकारी मिली। शुभम ने जैविक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग किया, जिससे उनकी फसल की गुणवत्ता बढ़ी और बाजार में उनकी मांग बढ़ी। उनकी इस पहल ने स्थानीय किसानों को भी प्रेरित किया है, और अब कई किसान उनके मॉडल को अपनाने की योजना बना रहे हैं।
चुनौतियां और भविष्य की योजनाएं
शुभम के सामने शुरुआती चुनौतियां थीं, जैसे उच्च प्रारंभिक निवेश और तकनीकी जानकारी की कमी। हालांकि, सरकारी सहायता और प्रशिक्षण ने इन बाधाओं को दूर किया। भविष्य में, शुभम अपनी खेती को एक एकड़ तक विस्तारित करने और टमाटर, खीरा, और बैंगन जैसी अन्य सब्जियों को शामिल करने की योजना बना रहे हैं। वे एक प्रसंस्करण इकाई स्थापित कर सब्जियों को डिब्बाबंद रूप में निर्यात करने की भी सोच रहे हैं।
निष्कर्ष
शुभम की कहानी यह साबित करती है कि शिक्षा, तकनीक, और सरकारी सहायता के साथ खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बनाया जा सकता है। उनकी सफलता उत्तर प्रदेश के अन्य युवा किसानों के लिए प्रेरणा है, जो पारंपरिक खेती छोड़कर आधुनिक तकनीकों को अपनाने की सोच रहे हैं। यह मॉडल भारत के ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।