भारत में आजादी के बाद पहली सोने की खदान
भारत में आजादी के बाद पहली सोने की खदान: आंध्र प्रदेश में 750 किलो सोना प्रतिवर्ष, डेक्कन गोल्ड माइन्स को मंजूरी
आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले के जोन्नागिरी क्षेत्र में भारत की आजादी के बाद पहली निजी सोने की खदान शुरू होने जा रही है। डेक्कन गोल्ड माइन्स लिमिटेड (DGML) को आंध्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से इस खदान को संचालित करने की अंतिम मंजूरी मिल गई है। यह खदान जियोमायसोर सर्विसेज (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड के सहयोग से संचालित होगी, जिसमें DGML की 40% हिस्सेदारी है। कंपनी के प्रबंध निदेशक हनुमा प्रसाद मोडाली के अनुसार, पहले वर्ष में खदान से 400 किलोग्राम सोना निकाला जाएगा, और पूर्ण क्षमता पर यह प्रतिवर्ष 750 किलोग्राम सोने का उत्पादन करेगी। यह पिछले 80 वर्षों में भारत में स्थापित पहली सोने की खदान है, जो देश के सोने के आयात पर निर्भरता को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इस खबर के बाद DGML के शेयरों में 14% की तेजी देखी गई, जो 10 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए।
जोन्नागिरी गोल्ड प्रोजेक्ट का महत्व
जोन्नागिरी गोल्ड प्रोजेक्ट भारत के खनन क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम है। भारत, जो प्रतिवर्ष औसतन 1,000 टन सोना आयात करता है, अब स्वदेशी उत्पादन को बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। वर्तमान में, कर्नाटक का हुति गोल्ड माइन्स देश का एकमात्र सक्रिय सोने की खदान है, जो सालाना 1.8 टन सोना उत्पादन करता है। कोलार गोल्ड फील्ड्स, जो ब्रिटिश काल में विश्व की सबसे गहरी खदानों में से एक थी, 2001 में बंद हो चुकी है। जोन्नागिरी खदान की शुरुआत से भारत का सोना उत्पादन बढ़कर लगभग 2.55 टन प्रति वर्ष हो सकता है, जो देश की कुल मांग का एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण हिस्सा है।
परियोजना की प्रगति और आर्थिक प्रभाव
हनुमा प्रसाद मोडाली ने बताया कि खदान और प्रोसेसिंग प्लांट को संचालित करने की अनुमति मिलने के बाद, कुछ महीनों में ट्रायल रन शुरू होंगे। परियोजना में अब तक 200 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है, और पहले वर्ष में 300-350 करोड़ रुपये की राजस्व की उम्मीद है, जिसमें 60% का EBITDA मार्जिन अनुमानित है। पूर्ण क्षमता पर, यह खदान स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगी और रोजगार सृजन करेगी। खनन क्षेत्र में भारत का योगदान वर्तमान में GDP का केवल 2.5% है, जबकि ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में यह 14.3% है। यह परियोजना भारत की खनन क्षमता को बढ़ाने और आयात पर निर्भरता कम करने की दिशा में एक कदम है।
भारत में सोने का सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व
सोना भारत में सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है। यह शादियों, त्योहारों जैसे दीवाली और अक्षय तृतीया, और धार्मिक अनुष्ठानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा सोना उपभोक्ता है, और इसकी मांग का अधिकांश हिस्सा आयात के माध्यम से पूरा होता है। जोन्नागिरी खदान से उत्पादित सोना नजदीकी रिफाइनरियों को बेचा जाएगा, जो स्थानीय आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करेगा। यह परियोजना भारत के 500 मिलियन टन सोने के अयस्क भंडार का दोहन करने की दिशा में भी एक शुरुआत है, जिसमें आंध्र प्रदेश 3% भंडार के साथ महत्वपूर्ण योगदान देता है।
चुनौतियां और भविष्य की संभावनाएं
जोन्नागिरी परियोजना को शुरू करने में कई चुनौतियां आईं, जैसे भूमि अधिग्रहण और पर्यावरणीय मंजूरी। 2005 से शुरू हुई प्रक्रिया को 1,500 एकड़ भूमि की आवश्यकता थी, जिसमें 350 एकड़ खरीदी गई और शेष लंबी अवधि के लिए लीज पर ली गई। कोविड-19 महामारी ने परियोजना को 2020 से 2025 तक विलंबित किया। भविष्य में, कंपनी उत्पादन को 1 टन प्रति वर्ष तक बढ़ाने की योजना बना रही है। भारत सरकार ने 2015 के खनन सुधारों के साथ गहरे खनिजों के लिए नीलामी प्रणाली शुरू की, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह जोखिम भरे निवेश को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। अधिक निजी भागीदारी और प्रौद्योगिकी नवाचार इस क्षेत्र को और मजबूत कर सकते हैं।
निष्कर्ष
जोन्नागिरी गोल्ड माइन्स भारत के खनन इतिहास में एक नया अध्याय शुरू कर रही है। यह परियोजना न केवल सोने के उत्पादन को बढ़ाएगी, बल्कि स्थानीय रोजगार और आर्थिक विकास को भी प्रोत्साहित करेगी। डेक्कन गोल्ड माइन्स की यह पहल भारत को वैश्विक सोने के बाजार में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।