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रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर को बॉम्बे हाईकोर्ट से बड़ी राहत, MMRDA से मिलेगा 8,000 करोड़ रुपये

रिलायंस ग्रुप की कंपनी रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर (Reliance Infrastructure) को बॉम्बे हाईकोर्ट से एक बड़ा कानूनी लाभ मिला है। कोर्ट ने मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड (MMOPL) और मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी (MMRDA) के बीच चल रहे एक लंबे विवाद में रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर के पक्ष में फैसला सुनाया है। इस फैसले के तहत MMRDA को रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर को लगभग 8,000 करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा।

 

क्या है पूरा मामला?

मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड (MMOPL) एक संयुक्त उद्यम है जिसमें रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर की बहुलांश हिस्सेदारी है। इस कंपनी ने मुंबई की मेट्रो लाइन-1 (Versova-Andheri-Ghatkopar) के निर्माण और संचालन का काम किया था। MMRDA इस परियोजना की सरकारी पक्ष थी।

परियोजना के दौरान लागत में हुई बढ़ोतरी, भूमि अधिग्रहण की देरी और अन्य प्रशासनिक समस्याओं के चलते रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर ने MMRDA से आर्थिक मुआवज़े की मांग की थी। यह मामला कई वर्षों से आर्बिट्रेशन (मध्यस्थता) में था।

 

मध्यस्थता और हाईकोर्ट का फैसला

मध्यस्थता ट्रिब्यूनल ने 2023 में रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर के पक्ष में निर्णय दिया था, जिसमें कहा गया था कि MMRDA को 8,000 करोड़ रुपये का भुगतान करना चाहिए। हालांकि MMRDA इस फैसले के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट गई थी।

अब बॉम्बे हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल के फैसले को बरकरार रखते हुए MMRDA की याचिका को खारिज कर दिया है। इससे रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर को कानूनी रूप से यह राशि मिलने का रास्ता साफ हो गया है।

 

कंपनी के शेयर में उछाल

इस खबर के बाजार में आते ही रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर के शेयर में तेजी देखने को मिली। निवेशकों को उम्मीद है कि इस राशि से कंपनी की वित्तीय स्थिति में बड़ा सुधार आएगा। साथ ही, कंपनी भविष्य की परियोजनाओं में भी आक्रामक रूप से भाग ले सकेगी।

 

आर्थिक दृष्टिकोण से क्यों है यह अहम?

रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर पर पहले से ही कर्ज का बोझ है और पिछले कुछ सालों से कंपनी की आर्थिक हालत चुनौतीपूर्ण रही है। ऐसे में 8,000 करोड़ रुपये की यह राशि न केवल कंपनी के कर्ज चुकाने में मदद करेगी बल्कि उसे नई परियोजनाओं में निवेश के लिए भी पूंजी उपलब्ध कराएगी।

इसके साथ ही, यह फैसला भारत में बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं में निजी कंपनियों की भूमिका और उनके अधिकारों को लेकर एक मजबूत कानूनी संकेत भी देता है।

 

सरकार और एजेंसियों के लिए चेतावनी

MMRDA जैसी सरकारी एजेंसियों के लिए यह फैसला एक सतर्कता संकेत है कि यदि वे निजी कंपनियों के साथ हुए अनुबंधों का पालन नहीं करती हैं या उन्हें उचित सहयोग नहीं देती हैं, तो कानूनी तौर पर उन्हें बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

 

निष्कर्ष

रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट का यह फैसला आर्थिक और प्रतिष्ठान दोनों दृष्टि से एक बड़ी जीत है। यह मामला निजी और सरकारी साझेदारी (PPP) मॉडल के तहत चल रही परियोजनाओं में न्यायिक हस्तक्षेप की अहमियत को भी दर्शाता है। अब सभी की नजर इस बात पर होगी कि MMRDA इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाती है या नहीं, और रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर इस राशि का उपयोग कैसे करती है।

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