EconomyNews

इंडसइंड बैंक के माइक्रोफाइनेंस लोन में 7000 करोड़ के अनियमितताओं का मामला

इंडसइंड बैंक, भारत के प्रमुख निजी क्षेत्र के बैंकों में से एक, अपने माइक्रोफाइनेंस लोन पोर्टफोलियो में कथित अनियमितताओं के कारण चर्चा में है। हाल ही में इंडसइंड बैंक के माइक्रोफाइनेंस लोन पोर्टफोलियो में लगभग 7000 करोड़ रुपये की अनियमितताओं की खबर सामने आई है, जिसने निवेशकों और बैंकिंग क्षेत्र को हिलाकर रख दिया है। एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, बैंक 6,000 से 7,000 करोड़ रुपये के लोन की जांच कर रहा है, जिनमें उधार देने की प्रक्रियाओं में अनियमितताओं का संदेह है। यह मामला बैंक के ऋण प्रबंधन और निगरानी तंत्र पर गंभीर सवाल खड़े करता है। ये लोन मुख्य रूप से छोटे आकार के असुरक्षित (unsecured) लोन हैं, जिन्हें कथित तौर पर माइक्रोफाइनेंस संस्थानों (MFIs) से जोड़ा गया और कुछ मामलों में कृषि लोन के रूप में गलत वर्गीकृत किया गया। इस रिपोर्ट में, हम इन अनियमितताओं, उनके प्रभाव, बैंक की प्रतिक्रिया, और शेयर बाजार पर इसके असर का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करते हैं, जो विश्वसनीय स्रोतों और डेटा पर आधारित है।

यह मामला बैंक के ऋण प्रबंधन और निगरानी तंत्र पर गंभीर सवाल खड़े करता है। इस रिपोर्ट में हम इस मामले की पृष्ठभूमि, संभावित कारणों, बैंक और निवेशकों पर प्रभाव, तथा भविष्य की संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

परिचय व संदर्भ

जून 2025 में मनीकंट्रोल और अन्य मीडिया रिपोर्ट्स में सामने आया कि IndusInd Bank अपने माइक्रोफाइनेंस (MFI) और अन्य छोटे, अनसिक्योर्ड लोन कुल मिलाकर लगभग ₹6,000‑7,000 करोड़ के लोन के साथ “Ever greening” यानी बकाया ऋण को नए ऋण देकर छिपाने की संदिग्ध प्रैक्टिस में लिप्त था ।

इस फाइनेंशियल स्ट्रिकेटेजी का उद्देश्य था पुराने बकाया लोन को नए लोन से क्लीन दिखाना था लेकिन यह आरबीआई और लेखांकन मानकों के अनुरूप नहीं है।

अनियमितताओं का विवरण

इंडसइंड बैंक के माइक्रोफाइनेंस पोर्टफोलियो में 6,000-7,000 करोड़ रुपये के लोन की जांच चल रही है। ये लोन मुख्य रूप से छोटे आकार के असुरक्षित लोन हैं, जो माइक्रोफाइनेंस संस्थानों से संबंधित हैं। सूत्रों का दावा है कि इन लोनों को मौजूदा MFI लोनों को गैर-निष्पादित (non-performing) होने से बचाने के लिए दिया गया था। कुछ लोनों को कृषि लोन के रूप में दर्ज किया गया, जिनके लिए संरचित चुकौती अनुसूची की आवश्यकता नहीं होती, जिससे नियमों का उल्लंघन होने का संदेह पैदा हुआ।

एक विशेष प्रथा, जिसे “एवरग्रीनिंग” के समान माना जा रहा है, में शामिल है कि यदि किसी महिला को दिया गया 20,000 रुपये का माइक्रोफाइनेंस लोन 60 दिनों से अधिक समय तक बकाया रहता है, तो बैंक ने कथित तौर पर उसके पति को बड़ा लोन देकर उसका भुगतान कर दिया। यह प्रक्रिया लोन को डिफॉल्ट के रूप में वर्गीकृत होने से बचाने के लिए थी। हालांकि, इंडसइंड बैंक ने इन दावों का खंडन किया है, यह कहते हुए कि उनकी माइक्रोफाइनेंस नीति केवल महिलाओं को लोन देने पर केंद्रित है, न कि उनके पति को।

मामले की पृष्ठभूमि

इंडसइंड बैंक एक प्रमुख निजी क्षेत्र का बैंक है, जिसका माइक्रोफाइनेंस लोन पोर्टफोलियो काफी बड़ा है। हालांकि, हाल के दिनों में बैंक के इस पोर्टफोलियो में लगभग 7000 करोड़ रुपये के ऋणों में अनियमितताएँ पाई गई हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, ये ऋण प्रॉपर डॉक्युमेंटेशन, क्रेडिट अप्रूवल प्रक्रिया और रिपेमेंट ट्रैकिंग के मानकों का पालन नहीं करते हैं।

इस मामले की जानकारी सबसे पहले बैंक के आंतरिक ऑडिट में सामने आई, जिसके बाद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने भी इसकी जाँच शुरू कर दी है। यह घटना उस समय सामने आई है जब बैंकिंग क्षेत्र पहले से ही COVID-19 के बाद के ऋण संकट और बढ़ते एनपीए (NPA) से जूझ रहा है।

अनियमितताओं के संभावित कारण

इस मामले में कई कारक जिम्मेदार हो सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:

  1. कमजोर ऋण मूल्यांकन प्रक्रिया

बैंक ने माइक्रोफाइनेंस लोन देते समय उधारकर्ताओं की क्रेडिट योग्यता का सही आकलन नहीं किया होगा।

दस्तावेज़ीकरण में कमियाँ हो सकती हैं, जिससे ऋणों को गलत तरीके से मंजूरी मिल गई।

  1. लक्ष्य-आधारित ऋण वितरण का दबाव

बैंक के कर्मचारियों पर ऋण वितरण के लक्ष्य पूरे करने का दबाव हो सकता है, जिसके कारण उन्होंने मानक प्रक्रियाओं को नजरअंदाज किया।

कम आय वर्ग के उधारकर्ताओं को बिना उचित जाँच के ऋण दिए गए होंगे।

  1. निगरानी तंत्र में कमजोरियाँ

बैंक का आंतरिक ऑडिट और जोखिम प्रबंधन तंत्र प्रभावी नहीं रहा होगा, जिससे इतनी बड़ी राशि की अनियमितताएँ छिपी रह गईं।

RBI की निगरानी में भी यह मामला लंबे समय तक पकड़ में नहीं आया।

  1. COVID-19 का प्रभाव

महामारी के बाद माइक्रोफाइनेंस सेक्टर पर दबाव बढ़ा था, जिसके कारण कई उधारकर्ता ऋण चुकाने में असमर्थ रहे।

बैंक ने संभवतः रिकवरी प्रक्रिया को लेकर ढिलाई बरती होगी।

इस प्रक्रिया का स्वरूप

पहला चरण: बैंक पुराने MFI लोन (उदाहरण के लिए ₹20,000 की किश्त) जो 60+ दिनों से बकाया थे, उन्हें नए छोटे लोन के साथ समायोजित करता था ।

दूसरा चरण: नया लोन अक्सर उसी परिवार के सदस्य, जैसे पति को जारी किया जाता था—जिसका KYC अलग होता था, इसलिए बैंक इन दो लोन को जोड़कर ट्रैक नहीं किया जाता था ।

तीसरा चरण: कुछ मामलों में इन्हें कृषि ऋण (agri-loans) की श्रेणी में दिखाया गया, जिससे त्वरित किस्त नहीं चुकानी पड़ती और किन्ही अकाउंटिंग मानदंडों में छूट मिल जाती थी ।

इस रणनीति से बैंक के NPA (Non‑Performing Assets) फिगर्स कम दिखाई देते थे, वित्तीय स्थिति बेहतर बनी दिखती थी।

कब और कैसे पकड़ में आया?

आंतरिक ऑडिट विजिलेंस

मार्च‑अप्रैल 2025 में आंतरिक ऑडिट डिपार्टमेंट (IAD) ने MFI लोन में चिंताजनक पैटर्न पाए ।

बैंक की प्रतिक्रिया और ऑडिट

इंडसइंड बैंक ने इन अनियमितताओं की जांच के लिए EY और ग्रांट थॉर्नटन को नियुक्त किया है। EY माइक्रोफाइनेंस पोर्टफोलियो की ऑडिट कर रहा है, जबकि ग्रांट थॉर्नटन डेरिवेटिव अकाउंटिंग सहित अन्य प्रक्रियाओं की फोरेंसिक ऑडिट कर रहा है। बैंक के आंतरिक ऑडिट ने मार्च-अप्रैल 2025 में इन प्रथाओं को चिह्नित किया, जिसके बाद इन्हें बंद कर दिया गया। इसके अतिरिक्त, बैंक ने मार्च 2025 में माइक्रोफाइनेंस ब्याज आय में 600 करोड़ रुपये की विसंगति की सूचना दी थी, जिसके लिए EY को फोरेंसिक ऑडिट के लिए नियुक्त किया गया।

बैंक के प्रवक्ता ने दावों को “झूठा, गलत और अनुमानित” करार दिया, यह जोर देते हुए कि उनकी माइक्रोफाइनेंस नीति महिलाओं की वित्तीय स्वतंत्रता को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। हालांकि, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) और नेशनल फाइनेंशियल रिपोर्टिंग अथॉरिटी (NFRA) ने भी बैंक की लेखा प्रथाओं और ऑडिट प्रक्रियाओं की जांच शुरू की है, जिससे नियामक दबाव बढ़ गया है।

फॉरेंसिक ऑडिट की शुरुआत

बैंक ने EY को MFI पोर्टफोलियो का ऑडिट और Grant Thornton को फॉरेंसिक जांच के लिए नियुक्त किया,जिसमें डेरिवेटिव्स और लोन टीम सेगमेंट भी शामिल था ।

तत्काल कदम

जुलाई–अगस्त 2024 तक यह प्रक्रिया चली, लेकिन ऑडिट रिपोर्ट आने पर इसे तुरंत बंद कर दिया गया ।

लेखांकन में कितनी गड़बड़ी?

इंटरेस्ट इनकम में गड़बड़ी

EY के ऑडिट से यह सामने आया कि MFI पोर्टफोलियो में कुल ₹674 करोड़ इंटरेस्ट इनकम गलत तरीके से दर्ज की गई थी, जिसे जनवरी 2025 में पूरा उलट दिया गया ।

अन्य लेखांकन विसंगतियाँ

₹595 करोड़ “Other Assets” और “Other Liabilities” खातों में आधारहीन एंट्रीज ऑडिट में पकड़ी गईं, जिन्हें जनवरी 2025 में समायोजित किया गया ।

फीस इनकम में धोखाधड़ी

बैंक ने फर्जी या मैन्युअल एंट्रीज में से ₹172.58 करोड़ “fee income” रूप में दर्ज किए, जिसकी फॉरेंसिक जांच चल रही है और संभावित स्टाफ का इसमें नाम है ।

वित्तीय असर

Q4 FY25 में रिकार्ड लॉस: बैंक ने 31 मार्च 2025 को समाप्त तिमाही में ₹2,236 करोड़ का भारी नुकसान दर्ज किया, जिसमें डेरिवेटिव्स और MFI लेखांकन दोनों शामिल थे ।

डेट में गिरावट: ग्रॉस NPAs 2.25% से बढ़कर 3.13% हो गए; देनदारियों में भी बढ़ोतरी हुई ।

पूंजी और रिज़र्व पर असर: ₹1,325 करोड़ के contingency buffer से गिरावट को कवर किया गया; NIMs में 67 bps की कमी आई ।

शेयर बाजार पर प्रभाव

इन खबरों के बाद, 24 जून, 2025 को इंडसइंड बैंक के शेयरों में गिरावट देखी गई। दोपहर में शेयर 0.27% गिरकर 837 रुपये पर कारोबार कर रहा था। पिछले छह महीनों में शेयर 10% और एक साल में 43% गिरा है। 11 मार्च, 2025 को शेयर सबसे निचले स्तर 655 रुपये पर पहुंच गया था। इन अनियमितताओं और पहले की डेरिवेटिव अकाउंटिंग समस्याओं के कारण बैंक को सेंसेक्स और संभावित रूप से निफ्टी 50 से हटाए जाने की संभावना है।

हालांकि, कुछ सकारात्मक घटनाक्रम भी हुए। 18 जून, 2025 को, ग्लोबल ब्रोकरेज फर्म नोमुरा ने बैंक के शेयर को “बाय” रेटिंग दी और लक्ष्य मूल्य 700 रुपये से बढ़ाकर 1,050 रुपये कर दिया, जिससे शेयरों में 3.5% की वृद्धि हुई। नोमुरा ने गवर्नेंस सुधार और नए नेतृत्व की खोज को सकारात्मक संकेत माना।

बैंक और निवेशकों पर प्रभाव

इस घटना का इंडसइंड बैंक और उसके निवेशकों पर गहरा असर पड़ सकता है:

  1. शेयर की कीमतों में गिरावट

इस खबर के बाद इंडसइंड बैंक के शेयरों में तेज गिरावट देखी गई।

निवेशकों को डर है कि यह मामला बैंक की वित्तीय स्थिरता और लाभप्रदता को प्रभावित करेगा।

  1. RBI की कार्रवाई का जोखिम

RBI बैंक पर पाबंदियाँ या जुर्माना लगा सकता है, जैसा कि पहले YES बैंक और DHFL के मामलों में देखा गया है।

बैंक को अपनी ऋण नीतियों में सुधार करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है, जिससे भविष्य में ऋण वितरण प्रभावित होगा।

  1. ग्राहकों और जमाकर्ताओं का विश्वास डगमगाना

इस तरह की खबरें बैंक की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा सकती हैं, जिससे नए ग्राहकों और जमाकर्ताओं का भरोसा कम हो सकता है।

 

वित्तीय प्रदर्शन

मार्च 2025 के लिए बैंक की तिमाही फाइलिंग में माइक्रोफाइनेंस लोन प्रदर्शन में असामान्य रुझान देखे गए। बैंक ने 10,633 करोड़ रुपये की ब्याज आय की सूचना दी, लेकिन 2,328 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा दर्ज किया। यह घाटा लोन प्रावधानों और माइक्रोफाइनेंस पोर्टफोलियो में विसंगतियों से संबंधित हो सकता है।

नेतृत्व और नियामक प्रतिक्रिया

नेतृत्व में बदलाव: CEO Sumant Kathpalia और Dy-CEO Arun Khurana अप्रैल 2025 में इस्तीफा दे चुके हैं; जून तक RBI नए नाम की अनुशंसा की मांग कर रहा है ।

SEBI जांच: SEBI वरिष्ठ अधिकारियों पर ₹3,400 करोड़ के लेखांकन धोखाधड़ी को लेकर गहन जांच कर रहा है ।

ICAI की प्रगति: ICAI की पीथम FRRB Gensol और IndusInd के ऑडिट रिपोट्स पर अगले 6 माह में रिपोर्ट तैयार करेगा ।

RBI पूरी निगरानी में: RBI ने बैंक को आंतरिक नियंत्रण सुधारने और लेखांकन विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं।

बैंक की आधिकारिक प्रतिक्रिया

IndusInd Bank ने स्पष्ट रूप से कहा:

ये रिपोर्ट्स “गलत, भ्रामक और अनुमान आधारित” हैं।

बैंक की MFI नीति सिर्फ महिलाओं को लोन देने पर केंद्रित है; पतियों को लोन दिए जाने वाली बात निराधार है ।

गलतियाँ पकड़ी गईं और प्रक्रियात्मक सुधार किए जा रहे हैं; फॉरेंसिक रिपोर्ट्स मूल्यों पर अमल शुरू हो चुका है ।

चुनौतियां और जोखिम

इन अनियमितताओं ने बैंकिंग प्रणाली में प्रक्रिया की कमजोरियों और लोन गुणवत्ता की निगरानी पर सवाल उठाए हैं। माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में जोखिम पहले से ही अधिक है, और गलत वर्गीकरण या एवरग्रीनिंग जैसी प्रथाएं नियामक कार्रवाइयों को आकर्षित कर सकती हैं। NFRA ने 2017 से बैंक के ऑडिटर्स से पूरे ऑडिट फाइलों की मांग की है, जो दीर्घकालिक लेखा समस्याओं की जांच का संकेत देता है।

इसके अलावा, बैंक के पूर्व एमडी और सीईओ सुमंत कथपालिया का इस्तीफा, माइक्रोफाइनेंस और वाहन वित्त पोर्टफोलियो में प्रावधानों और परिसंपत्ति वर्गीकरण में चूक के कारण और विवाद को बढ़ाता है। इससे निवेशकों का विश्वास कम हुआ है।

भविष्य की संभावनाएं

इंडसइंड बैंक ने नए MFI ग्राहकों को शामिल करने पर अस्थायी रोक लगा दी है, जो जोखिम प्रबंधन की दिशा में एक कदम है। RBI ने बैंक की रिकवरी प्रयासों को स्वीकार किया है, और गवर्नेंस सुधार और नए नेतृत्व की खोज से स्थिति में सुधार की उम्मीद है। नोमुरा का अनुमान है कि FY26-FY28 में बैंक का रिटर्न ऑन असेट्स (RoA) 0.8-1.1% और रिटर्न ऑन इक्विटी (RoE) 7-10% तक पहुंच सकता है।

हालांकि, बैंक को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है:

नियामक अनुपालन: RBI और NFRA की जांच से जुर्माना या सख्त नियम लागू हो सकते हैं।

लोन गुणवत्ता: माइक्रोफाइनेंस पोर्टफोलियो में और नुकसान की संभावना बनी हुई है।

निवेशक विश्वास: शेयर की कीमतों में लगातार गिरावट और सेंसेक्स/निफ्टी से हटाए जाने से निवेशक भावना प्रभावित हो सकती है।

भविष्य की संभावनाएँ और बैंक की प्रतिक्रिया

इंडसइंड बैंक ने इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि वह आंतरिक जाँच और RBI के साथ मिलकर इस समस्या का समाधान करने की कोशिश कर रहा है। बैंक ने निवेशकों को आश्वासन दिया है कि वह अपने रिस्क मैनेजमेंट सिस्टम को मजबूत करेगा।

संभावित समाधान:

ऋण पोर्टफोलियो की समीक्षा: बैंक को अपने सभी माइक्रोफाइनेंस ऋणों की गहन समीक्षा करनी चाहिए।

डिजिटल ऑडिट सिस्टम लागू करना: मैनुअल प्रक्रियाओं की जगह ऑटोमेटेड लोन मॉनिटरिंग सिस्टम अपनाया जाना चाहिए।

RBI के दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन: बैंक को भविष्य में ऋण वितरण में RBI के नियमों का पालन करना होगा।

निष्कर

लेखा पारदर्शिता पर संकट: ₹6,000‑7,000 करोड़ के इंटरेस्ट/फीस और लेखांकन विसंगतियों ने बैंक की विश्वसनीयता पर गहरा असर डाला।

नियामक हस्तक्षेप जरूरी: SEBI, RBI और ICAI सभी इस मामले में सक्रीय, संभव है कि यह जून–सितंबर 2025 तक भी व्यापक हो जाए।

वित्तीय प्रभाव और नव नेतृत्व: न सिर्फ तिमाही नतीजे प्रभावित होंगे, बल्कि पूंजी संरचना की मजबूती और नए CEO के सामने सिर पर बड़ी चुनौतियाँ हैं।

बाजार का विश्वास: शेयर लगभग 43% टूट चुका है,भविष्य में सुधार तभी संभव है जब बैंक नियंत्रण, रिपोर्टिंग और गवर्नेंस बेहतर करे।

IndusInd Bank का यह मामला सिर्फ एक लेखांकन गड़बड़ी नहीं, बल्कि एक व्यापक फाइनेंशियल और रेगुलेटरी संकट बन चुका है। इससे इंडस्ट्री के अन्य बैंकिंग समूह को भी सतर्क होना चाहिए। अब यह देखने की बात होगी कि आने वाले तिमाही नतीजे, नियामकों की कार्रवाई और बैंक की सुधार प्रक्रिया क्या दिशा तय करती है।

इंडसइंड बैंक का माइक्रोफाइनेंस लोन पोर्टफोलियो में कथित अनियमितताएं बैंकिंग क्षेत्र में पारदर्शिता और अनुपालन के महत्व को रेखांकित करती हैं। 6,000-7,000 करोड़ रुपये के लोन की जांच, गलत वर्गीकरण, और एवरग्रीनिंग के संदेह ने बैंक की प्रतिष्ठा और वित्तीय स्थिरता पर सवाल उठाए हैं। हालांकि बैंक ने ऑडिट और सुधारात्मक कदम उठाए हैं, नियामक दबाव और निवेशक विश्वास को पुनर्जनन में समय लगेगा। यह स्थिति अन्य बैंकों के लिए भी एक चेतावनी है कि वे अपनी उधार प्रथाओं और आंतरिक नियंत्रणों को मजबूत करें। इंडसइंड बैंक के लिए, भविष्य में गवर्नेंस सुधार, मजबूत ऑडिट प्रक्रियाएं, और नियामक अनुपालन महत्वपूर्ण होंगे ताकि वह इस संकट से उबर सके और अपनी विश्वसनीयता को पुनः स्थापित कर सके।

इंडसइंड बैंक का यह मामला भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में ऋण प्रबंधन और निगरानी तंत्र की कमजोरियों को उजागर करता है। अगर बैंक जल्दी ही इस समस्या का समाधान नहीं करता है, तो इसके वित्तीय प्रदर्शन और शेयर की कीमतों पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है। निवेशकों को सलाह दी जाती है कि वे बैंक की आधिकारिक घोषणाओं और RBI की रिपोर्ट्स पर नजर रखें।

इस मामले से यह सबक भी मिलता है कि बैंकों को पारदर्शिता और जवाबदेही बनाए रखने के लिए अपने आंतरिक नियंत्रण तंत्र को लगातार मजबूत करना चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
बचत की महिमा, Glory of saving