सरकार ने कच्चे खाद्य तेल के आयात शुल्क में की 10% की कटौती, जानें आम लोगों को कैसे मिलेगा फायदा
भारत सरकार ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए कच्चे खाद्य तेलों (क्रूड एडिबल ऑयल) पर आयात शुल्क को 20% से घटाकर 10% कर दिया है। यह कदम देश में बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करने और उपभोक्ताओं को राहत प्रदान करने के उद्देश्य से उठाया गया है। इस निर्णय से न केवल घरेलू रिफाइनिंग उद्योग को प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि आम जनता को भी खाद्य तेलों की कीमतों में कमी का लाभ मिलेगा।
आयात शुल्क में कटौती: मुख्य बिंदु
किस पर लागू होगा: यह कटौती कच्चे पाम ऑयल, सोयाबीन ऑयल और सूरजमुखी तेल पर लागू होगी।
प्रभावी दर: कृषि अवसंरचना और विकास उपकर (AIDC) तथा सामाजिक कल्याण उपकर (Social Welfare Surcharge) सहित कुल प्रभावी आयात शुल्क अब 27.5% से घटकर 16.5% हो गया है।
समयसीमा: यह नीति 31 मई 2025 से प्रभावी हो गई है और एक वर्ष तक लागू रहेगी।
आम जनता को लाभ
खाद्य तेलों की कीमतों में हाल के महीनों में लगभग 30% की वृद्धि हुई थी, जिससे आम उपभोक्ताओं पर आर्थिक दबाव बढ़ा था। सरकार के इस निर्णय से खुदरा स्तर पर खाद्य तेलों की कीमतों में 5-6% की कमी आने की संभावना है, जो अगले दो सप्ताहों में महसूस की जा सकती है। थोक बाजारों में पहले से ही कीमतों में नरमी के संकेत दिखाई दे रहे हैं।
घरेलू रिफाइनिंग उद्योग को प्रोत्साहन
इस निर्णय से कच्चे और परिष्कृत खाद्य तेलों के बीच आयात शुल्क का अंतर 8.25% से बढ़कर 19.25% हो गया है। इससे आयातक कच्चे तेलों का आयात बढ़ाएंगे और देश में रिफाइनिंग गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। घरेलू रिफाइनिंग उद्योग, जो पहले आयातित परिष्कृत तेलों के कारण प्रतिस्पर्धा में पिछड़ रहा था, अब पुनः सक्रिय हो सकेगा।
वैश्विक व्यापार पर प्रभाव
भारत विश्व का सबसे बड़ा खाद्य तेल आयातक है, जो अपनी आवश्यकताओं का 70% से अधिक आयात करता है। पाम ऑयल मुख्यतः इंडोनेशिया और मलेशिया से, जबकि सोयाबीन और सूरजमुखी तेल अर्जेंटीना, ब्राजील, रूस और यूक्रेन से आयात किया जाता है। आयात शुल्क में कटौती से इन देशों से आयात बढ़ेगा, जिससे वैश्विक खाद्य तेल बाजार में भी प्रभाव पड़ेगा।
निष्कर्ष
सरकार का यह निर्णय उपभोक्ताओं को राहत देने, घरेलू रिफाइनिंग उद्योग को प्रोत्साहित करने और महंगाई पर नियंत्रण पाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। आगामी महीनों में खाद्य तेलों की कीमतों में स्थिरता और संभावित कमी की उम्मीद की जा सकती है, जिससे आम जनता को आर्थिक रूप से लाभ होगा।