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मई 2025 में खुदरा मुद्रास्फीति 6 साल के निचले स्तर 2.82% पर: सरकारी आंकड़े

खुदरा मुद्रास्फीति

खुदरा मुद्रास्फीति

भारत में खुदरा मुद्रास्फीति मई 2025 में छह साल के निचले स्तर 2.82% पर पहुंच गई, जो भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के 4% के मध्यम अवधि के लक्ष्य से काफी नीचे है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, यह गिरावट मुख्य रूप से खाद्य कीमतों में नरमी और आपूर्ति श्रृंखला में सुधार के कारण आई है। मई 2024 में यह दर 4.75% थी, जबकि अप्रैल 2025 में यह 3.1% थी। यह लगातार तीसरा महीना है जब मुद्रास्फीति RBI के 2-6% के सहनशीलता बैंड के भीतर रही है, जो अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संकेत है।

 

खाद्य मुद्रास्फीति में कमी

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति में कमी का प्रमुख कारण खाद्य वस्तुओं की कीमतों में स्थिरता है। मई 2025 में खाद्य मुद्रास्फीति 4.5% रही, जो अप्रैल के 5.2% से कम है। सब्जियों, दालों और खाद्य तेलों की कीमतों में कमी ने इस गिरावट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अलावा, मानसून की अच्छी प्रगति और कृषि उत्पादन में वृद्धि ने खाद्य आपूर्ति को स्थिर करने में मदद की है। विशेषज्ञों का मानना है कि वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल और अन्य वस्तुओं की कीमतों में कमी ने भी अप्रत्यक्ष रूप से मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में योगदान दिया है।

 

ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में अंतर

आंकड़ों के अनुसार, मई 2025 में ग्रामीण क्षेत्रों में मुद्रास्फीति 3.2% रही, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 2.5% थी। यह अंतर मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य और ईंधन की कीमतों पर अधिक निर्भरता के कारण है। शहरी क्षेत्रों में, गैर-खाद्य वस्तुओं जैसे आवास और परिवहन की कीमतों में स्थिरता ने मुद्रास्फीति को और कम करने में मदद की।

 

RBI की नीतियों का प्रभाव

RBI ने मुद्रास्फीति को 4% (+/- 2%) के दायरे में रखने के लिए कई कदम उठाए हैं। हाल के महीनों में रेपो रेट को स्थिर रखने और तरलता प्रबंधन पर ध्यान देने से अर्थव्यवस्था में स्थिरता आई है। विशेषज्ञों का कहना है कि केंद्रीय बैंक की सतर्क मौद्रिक नीति और सरकार की आपूर्ति श्रृंखला सुधार नीतियों ने इस उपलब्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हालांकि, कुछ अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी है कि खाद्य कीमतों में मौसमी उतार-चढ़ाव और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताएं भविष्य में चुनौतियां पेश कर सकती हैं।

 

उपभोक्ताओं के लिए राहत

कम मुद्रास्फीति का मतलब है कि आम उपभोक्ताओं के लिए आवश्यक वस्तुओं की कीमतें स्थिर रहेंगी, जिससे उनकी क्रय शक्ति बढ़ेगी। विशेष रूप से मध्यम और निम्न-आय वर्ग के परिवारों को इससे राहत मिलेगी। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि खाद्य कीमतों में अस्थिरता और वैश्विक कमोडिटी कीमतों में उतार-चढ़ाव पर नजर रखना जरूरी है।

 

आर्थिक प्रभाव और भविष्य की संभावनाएं

कम मुद्रास्फीति का असर न केवल उपभोक्ताओं पर, बल्कि समग्र अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक है। इससे निजी खपत को बढ़ावा मिलेगा और निवेश के लिए अनुकूल माहौल बनेगा। आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 में कहा गया था कि 6.8% की मुद्रास्फीति न तो निजी खपत को रोकने के लिए बहुत अधिक है और न ही निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए बहुत कम। वर्तमान में 2.82% की दर इस संतुलन को और बेहतर बनाती है।

 

हालांकि, विशेषज्ञों ने सतर्क रहने की सलाह दी है। वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव, भू-राजनीतिक तनाव और जलवायु परिवर्तन से संबंधित जोखिम मुद्रास्फीति को प्रभावित कर सकते हैं। इसके अलावा, खाद्य उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखला में किसी भी व्यवधान का असर कीमतों पर पड़ सकता है।

 

निष्कर्ष

मई 2025 में खुदरा मुद्रास्फीति का 2.82% तक गिरना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संकेत है। यह RBI की प्रभावी नीतियों, सरकार के सुधारों और अनुकूल वैश्विक परिस्थितियों का परिणाम है। हालांकि, दीर्घकालिक स्थिरता के लिए सतर्कता और नीतिगत समन्वय जरूरी है। उपभोक्ताओं के लिए यह राहत की खबर है, और अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि यह स्थिरता अगले कुछ महीनों तक बनी रहेगी।

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