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भारत पर पड़ेगा ये असर, इजरायल-ईरान तनाव के बीच कच्चे तेल के दामों में भारी उछाल

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मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव के बीच वैश्विक कच्चे तेल के दामों में भारी उछाल देखने को मिला है। इजरायल द्वारा ईरान पर हमले के बाद ब्रेंट क्रूड तेल की कीमतों में 10 डॉलर प्रति बैरल से अधिक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जो 92 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को पार कर गई है। यह वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय बन गई है, क्योंकि देश अपनी तेल जरूरतों का 85% से अधिक आयात पर निर्भर है।

 

तेल बाजार में हलचल के प्रमुख कारण

इजरायल-ईरान तनाव में तेजी से बाजारों में अस्थिरता

हॉर्मुज जलडमरूमध्य के बंद होने की आशंका से आपूर्ति चिंताएं

OPEC+ द्वारा उत्पादन कटौती जारी रखने की संभावना

अमेरिकी तेल भंडारों में अप्रत्याशित कमी

 

भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

महंगाई दबाव:

पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि से WPI और CPI महंगाई बढ़ सकती है

RBI की मौद्रिक नीति पर असर, ब्याज दरों में कटौती में देरी संभव

रुपये पर दबाव:

तेल आयात बिल बढ़ने से चालू खाता घाटा चिंताजनक स्तर तक पहुंच सकता है

USD/INR विनिमय दर 83.50 के स्तर को पार कर सकती है

सरकारी वित्त पर प्रभाव:

उच्च तेल कीमतों से सब्सिडी का बोझ बढ़ सकता है

राजकोषीय घाटे के लक्ष्यों को पूरा करने में चुनौतियां

 

विशेषज्ञों का विश्लेषण

“अगर तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल को पार करती हैं, तो भारत का वार्षिक तेल आयात बिल 20-25% बढ़ सकता है, जो मौजूदा व्यापार घाटे को और बढ़ाएगा।”

“सरकार को तेल कंपनियों को राहत देने के लिए उत्पाद शुल्क में कटौती पर विचार करना चाहिए, अन्यथा पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी का सीधा असर आम आदमी पर पड़ेगा।”

 

संभावित समाधान

रिफाइनरियों के लिए विशेष कच्चे तेल खरीद व्यवस्था

रूस से रियायती दरों पर तेल आयात बढ़ाने की संभावना तलाशना

वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर तेजी से काम करना

रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार का उपयोग करने पर विचार

 

निवेशकों के लिए सुझाव

तेल और गैस क्षेत्र के शेयरों (ONGC, IOC, GAIL) में निवेश के अवसर

रिन्यूएबल एनर्जी कंपनियों पर ध्यान केंद्रित करना

गोल्ड जैसे सुरक्षित निवेश विकल्पों को प्राथमिकता

 

निष्कर्ष

मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव ने वैश्विक तेल बाजारों में उथल-पुथल मचा दी है। भारत जैसे तेल आयातक देशों के लिए यह स्थिति चिंताजनक है। सरकार और RBI को समन्वित रणनीति बनाने की आवश्यकता है ताकि अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव को कम किया जा सके। दीर्घकालिक समाधान के तौर पर ऊर्जा सुरक्षा पर ध्यान देना और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना ही एकमात्र रास्ता प्रतीत होता है।

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