5 जून 2025: मध्य प्रदेश के ग्वालियर और उत्तर प्रदेश के आगरा को जोड़ने वाला 88.4 किलोमीटर लंबा धौलपुर-आगरा ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे जल्द ही हकीकत बनने जा रहा है। यह छह लेन वाला एक्सप्रेसवे न केवल यात्रा के समय को आधा कर देगा, बल्कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच कनेक्टिविटी को भी मजबूत करेगा। नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) द्वारा निर्मित इस परियोजना की कुल लागत 4612.65 करोड़ रुपये है, और इसका निर्माण कार्य नवंबर 2025 से शुरू होने की उम्मीद है। इस एक्सप्रेसवे के पूरा होने पर ग्वालियर से आगरा की 120 किलोमीटर की दूरी, जो वर्तमान में 2.5 से 3 घंटे में तय होती है, मात्र डेढ़ घंटे में पूरी हो जाएगी।
परियोजना का विवरण और मार्ग
धौलपुर-आगरा एक्सप्रेसवे एक ग्रीनफील्ड परियोजना है, जो आगरा के बाहरी रिंग रोड पर देहरी गांव से शुरू होकर ग्वालियर बायपास के पास सुसेरा गांव तक जाएगा। यह एक्सप्रेसवे उत्तर प्रदेश के आगरा जिले (0.000 से 20.200 किमी), राजस्थान के धौलपुर जिले (20.200 से 47.200 किमी), और मध्य प्रदेश के मुरैना (47.200 से 88.250 किमी) और ग्वालियर जिले (88.250 से 88.400 किमी) से होकर गुजरेगा। यह मार्ग भिंड और मुरैना जैसे क्षेत्रों को भी जोड़ेगा और प्रस्तावित चंबल एक्सप्रेसवे के साथ एक इंटरचेंज होगा।
इस एक्सप्रेसवे का निर्माण तीन राज्यों के 65 गांवों से होकर होगा, जिसमें उत्तर प्रदेश के 14, राजस्थान के 18 और मध्य प्रदेश के 30 गांव शामिल हैं। मार्ग में आगरा जिले के देहरी, सलेमाबाद, ककरारी, करोधना, फूलपुर, नांगला पटम, लोहेटा, तोर, गोहरी, बाबरपुर, शेरपुर, सादुपुरा, पुसेन्टा, दरकी और महदेवा जैसे गांव शामिल हैं। राजस्थान के धौलपुर जिले में नगर, अजीतपुरा, बीच का पुरा, गैनहेंडी, नदोली, धोदी का पुरा, मछरिया, पहाड़ी, हनुमानपुरा जैसे गांव और मध्य प्रदेश के मुरैना और ग्वालियर जिले में बीलपुर, कुठियाना, जोहा, ऐसाह, लहार, श्यामपुर खुर्द, दिमनी, भटहारी जैसे गांव शामिल हैं।
निर्माण और सुविधाएं
इस एक्सप्रेसवे का निर्माण उदयपुर की जीआर इन्फ्राप्रोजेक्ट्स लिमिटेड को सौंपा गया है, जो इसे बिल्ड ऑपरेट ट्रांसफर (बीओटी) मॉडल के तहत विकसित करेगी। परियोजना की अवधि 20 वर्ष है, जिसमें 30 महीने का निर्माण समय शामिल है। इस एक्सप्रेसवे में आठ बड़े और 23 छोटे पुल, छह फ्लाईओवर, एक रेल ओवरब्रिज, पांच एलिवेटेड वायाडक्ट और 42 अंडरपास होंगे। अधिकतम गति सीमा 100 किमी/घंटा होगी, और जीपीएस-आधारित टोल और ट्रैफिक प्रबंधन प्रणाली भी स्थापित की जाएगी।
इसके अलावा, यात्रियों की सुविधा के लिए गैस स्टेशन, इलेक्ट्रिक चार्जिंग स्टेशन, बड़े फूड मॉल और लैंडस्केपिंग की योजना बनाई गई है। हर 20-25 किमी पर चार से पांच प्रवेश/निकास लूप होंगे, जिनमें मुरैना के एनएच-552 और धौलपुर के राजाखेड़ा रोड पर लूप शामिल हैं। यह एक्सप्रेसवे राष्ट्रीय राजमार्ग 44 (एनएच-44) की मरम्मत और उन्नयन को भी शामिल करता है, जो ग्वालियर से आगरा तक मौजूदा सड़क को बेहतर बनाएगा।
क्षेत्रीय और आर्थिक लाभ
यह एक्सप्रेसवे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के निवासियों, विशेष रूप से ग्वालियर, झांसी, भिंड, शिवपुरी, मुरैना, दतिया, दिमनी, अबाह और पोरसा क्षेत्रों के लोगों के लिए वरदान साबित होगा। यह परियोजना क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देगी, क्योंकि आगरा का ताजमहल और ग्वालियर का किला जैसे ऐतिहासिक स्थल आसानी से सुलभ हो जाएंगे। इसके अलावा, यह दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे, आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे और बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे से जुड़ेगा, जिससे दिल्ली से ग्वालियर की 360 किमी की दूरी 6-7 घंटे से घटकर 4 घंटे में तय हो सकेगी।
परियोजना से क्षेत्र में रोजगार सृजन होगा, विशेष रूप से निर्माण, आतिथ्य और पर्यटन क्षेत्रों में। यह औद्योगिक और वाणिज्यिक विकास को बढ़ावा देगा, जिससे संपत्ति की कीमतों में वृद्धि और स्थानीय व्यवसायों को लाभ होगा। यह एक्सप्रेसवे राष्ट्रीय चंबल वन्यजीव अभयारण्य से भी गुजरेगा, और इसके लिए पर्यावरणीय उपायों जैसे चंबल नदी पर केबल-स्टे ब्रिज, ध्वनि अवरोधक और लाइट कटर्स की योजना बनाई गई है।
पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव
परियोजना के लिए ताज ट्रेपेजियम जोन में 4000 पेड़ों को काटने की अनुमति एक चुनौती थी, लेकिन एनएचएआई ने पर्यावरणीय प्रभाव को संतुलित करने के लिए 1.24 लाख पेड़ लगाने का वादा किया है। यह कदम क्षेत्र की पारिस्थितिकी को बनाए रखने में मदद करेगा। इसके अलावा, यह एक्सप्रेसवे क्षेत्र में व्यापार और लॉजिस्टिक्स दक्षता को बढ़ाएगा, जिससे कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी।
निष्कर्ष
धौलपुर-आगरा ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे भारत के बुनियादी ढांचे के विकास में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह परियोजना न केवल ग्वालियर और आगरा के बीच यात्रा को तेज और सुविधाजनक बनाएगी, बल्कि तीन राज्यों के बीच आर्थिक और सामाजिक एकीकरण को भी बढ़ावा देगी। 2028 तक पूरा होने की उम्मीद के साथ, यह एक्सप्रेसवे क्षेत्र में पर्यटन, व्यापार और रोजगार के नए अवसर खोलेगा, जिससे भारत के उत्तरी हिस्से में कनेक्टिविटी का एक नया युग शुरू होगा।