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विदेशी निवेश भारत के मुद्रास्फीति पर क्या प्रभाव डालेगा ?…

Economy Indian

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विदेशी निवेश भारत के मुद्रास्फीति पर प्रभाव डाल सकता ?… विदेशी निवेश कैसे रुपये को प्रभावित करता है ?….

विदेशी निवेश (Foreign Portfolio Investment या FPI) भारत की मुद्रास्फीति (Inflation) पर कुछ हद तक परोक्ष रूप से प्रभाव डाल सकता है, लेकिन इसका प्रभाव सीधा और तत्काल नहीं होता। विदेशी निवेश (Foreign Investment), विशेषकर विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI), भारतीय रुपये (INR) के मूल्य को प्रभावित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका प्रभाव मांग और आपूर्ति के सिद्धांत पर आधारित होता है।

विदेशी निवेश के माध्यम से मुद्रास्फीति पर प्रभाव

  1. रुपया मजबूत हो सकता है

जब FPI के ज़रिए भारत में डॉलर आता है, तो डॉलर की आपूर्ति बढ़ जाती है।

इससे भारतीय रुपया मजबूत होता है (Rupee Appreciation)

मजबूत रुपया का मतलब है कि भारत को विदेश से आयात करने के लिए कम रुपए देने पड़ते हैं, जिससे तेल, गैस, कच्चा माल आदि सस्ते हो सकते हैं।

इससे आयातित मुद्रास्फीति (Imported Inflation) पर नियंत्रण रहता है।

 

  1. बॉन्ड यील्ड पर असर

अगर विदेशी निवेश डेट मार्केट (Bond market) में आता है, तो बॉन्ड की मांग बढ़ती है और यील्ड घट सकती है।

इससे लोन और कर्ज सस्ते हो सकते हैं, जिससे निवेश बढ़ता है।

परंतु इससे मांग बढ़ती है, जो मांग आधारित मुद्रास्फीति (Demand-pull inflation) को बढ़ा सकती है।

 

  1. शेयर बाजार में तेजी = समृद्धि की भावना

बाजार में तेजी से उपभोक्ताओं को “Wealth Effect” महसूस होता है – यानी लोग खुद को अमीर महसूस करते हैं।

इससे उपभोग बढ़ता है, और अधिक मांग से मुद्रास्फीति थोड़ी बढ़ सकती है।

 

जब विदेशी निवेश भारत में आता है (FPI Inflow) क्या होता है?

विदेशी निवेशक भारत के शेयर या बॉन्ड खरीदने के लिए डॉलर में पैसा भेजते हैं। यह डॉलर भारतीय रिजर्व बैंक या बैंकों को देते हैं और इसके बदले रुपया लेते हैं, ताकि भारतीय बाजार में निवेश कर सकें।

 

इसका असर:

डॉलर की आपूर्ति बढ़ जाती है → डॉलर कमजोर होता है

रुपये की मांग बढ़ जाती है → रुपया मजबूत होता है

यानी ₹ की कीमत $ के मुकाबले बढ़ जाती है

उदाहरण: $1 = ₹83 से घटकर ₹81

 

इसका फायदा:

आयात सस्ता हो जाता है (जैसे तेल, सोना, गैजेट्स)

महंगाई (inflation) कुछ हद तक कम हो सकती है

 

जब विदेशी निवेशक भारत से पैसा निकालते हैं (FPI Outflow) क्या होता है?

निवेशक भारत से पैसा वापस लेते हैं और डॉलर खरीदते हैं।

मतलब है: रुपये को बेचते हैं, डॉलर खरीदते हैं।

 

इसका असर:

डॉलर की मांग बढ़ जाती है → डॉलर मजबूत होता है

रुपये की आपूर्ति बढ़ जाती है → रुपया कमजोर होता है

यानी ₹ की कीमत $ के मुकाबले कम हो जाती है

उदाहरण: $1 = ₹82 से बढ़कर ₹84

 

इसका नुकसान:

आयात महंगा हो जाता है

पेट्रोल-डीजल, इलेक्ट्रॉनिक्स महंगे

महंगाई बढ़ने का खतरा

 

लेकिन सीमाएं भी हैं:

FPI बहुत चंचल (volatile) होता है – यह कभी भी बाहर निकल सकता है, जिससे रुपया कमजोर और बाजार गिर सकते हैं।

RBI की नीतियां (जैसे रेपो रेट) मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में अधिक प्रभावी होती हैं, न कि केवल FPI।

RBI की भूमिका:

जब ज्यादा डॉलर आता है, तो RBI इंटरवेंशन कर सकता है यानी बाजार से डॉलर खरीदकर रुपये की अधिक मजबूती को रोकता है।

जब डॉलर बाहर जा रहा होता है, RBI डॉलर बेचकर रुपये को गिरने से बचा सकता है।

 

निष्कर्ष:

विदेशी निवेश का प्रभाव      रुपये पर असर

निवेश आना (Inflow)    रुपया मजबूत

निवेश जाना (Outflow) रुपया कमजोर

विदेशी निवेश से आयात सस्ता होता है, इसलिए मुद्रास्फीति पर दबाव कम हो सकता है, खासकर तेल व इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उत्पादों के लिए।

लेकिन अगर निवेश से अत्यधिक खपत और मांग बढ़ती है, तो यह मुद्रास्फीति बढ़ा भी सकता है।

कुल मिलाकर, इसका असर सीमित पर महत्वपूर्ण हो सकता है – विशेषकर रुपये के मूल्य और उपभोक्ता व्यवहार के माध्यम से।

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